Sunday 21 July 2013

मदद करने की भी सीमा होती है

प्राचीन काल  में एक राजा  को एक बेटी पैदा हुयी लेकिन उसने अपने पुरे राज्य में घोषणा करावा दिया कि उसको पुत्र रत्न प्रप्त हुआ है। अपनी राजकुमारी को राजकुमार के  पोशाक में रखने लगा और राजकुमारी को सभी लोग राजकुमार के ही रूप में जानने लगे । जब राजकुमारी बड़ी हो गयी तो उसकी शादी एक राजकुमारी से तय कर दिया गया । राजकुमारी राजकुमार के वेश में दूल्हा बनकर बारातियों के साथ निकल पड़ी । रास्ते में एक जंगल में बारात के लोग विश्राम के लिए रुके । सभी बाराती खानाखाकर सो गए पर दुल्हे के आँखों से नींद गायब थी और घोर चिंतामग्न होकर वेचैनी से टहल रहा था । दूल्हा यह सोचकर परेशान था कि आज के बाद दो राजकुमारियों का जीवन बर्बाद हो जायेगा । तभी घुमते घुमते   जंगल के देवता वही से गुजर रहे थे तो  उन्होंने देखा की एक सुन्दर राजकुमार इतना वेचैन क्यों है । उन्होंने राजकुमार के पास आकार पूछा  -  बेटा तुम इतने चिंतित क्यों हो । कौन सी समस्या है जिससे आप इतने परेशान हो।  राजकुमार (दूल्हा ) ने कहा - हे अनजान पथिक आपको हमारी समस्यायों से क्या लेना देना । आपके पास हमारी  समस्या का समाधान नहीं है \। कृपया आप जाये । इस पर उस अनजान व्यक्ति ने कहा - मैं जंगल का देवता हूँ और आपकी समस्या का समाधान कर सकता हूँ । इतना सुनाने के बाद राजकुमार ने कहा - मै राजकुमारी हूँ पर मेरे पिता ने मुझे राजकुमार घोषित कर दिया और मैं राजकुमार के रूप में पुरे देश में जाने जनि लगी और आज मुझे दूल्हा बनाकर एक राजकुमारी से शादी करने के लिए जाना पड़ रहा है ।मै इस बात से परेशान हूँ कि एक राजकुमारी दुसरे राजकुमारी से शादी करने जा रही है और आज  इक साथ दो जिंदगी तबाह हो जाएगी ।
जंगल के देवता ने कहा मेरे साथ आओ मै तुम्हारी समस्या का समाधान करता हूँ । दोनों एक सुनसान जगह पर गए । वहां पहुच कर जंगल के देवता ने कहा इसी स्थान पर मै आज तुम्हारा  लिंग परिवर्तन करूँगा । कुछ समय के लिए मै स्त्री बन जाऊंगा और तुम पुरुष । जब तुम्हारी घर गृहस्ती बस जाये , तुम्हे संतान की प्राप्ति हो जाये तो इसी जगह पर आना और मुझे स्मरण करना । मै यहाँ उपस्थित हो जाऊंगा और पुनः अपना लिंग वापस ले लूँगा ।
कुछ समय बाद जब राज कुमार को संतान प्राप्त हो गयी । शर्त के अनुसार राजकुमार उस सुनसान जगह पर पहुचकर लिंग परिवर्तन के लिए उस देवता का स्मरण किया । देवता कुछही क्षणों उपस्थित हो गए । राजकुमार ने देवता को नमन करते हुए कहा कि हे देव हमारी  दुनिया बस गयी अब आप अपना लिंग वापस ले लीजिये और मुझे पुनः राजकुमारी बना दीजिये । राजकुमार की बात सुनकर देवता रो पड़े । राजकुमार ने कहा आप क्यों रो रहे है ? जंगल के देवता ने कहा - हे राजकुमार अब मै अपना लिंग वापस नहीं ले सकता हूँ । राजकुमार ने कहा क्यों ? देवता ने कहा कि मुझे लिंग परिवर्तन की शक्ति इसी शर्त पर मिली थी की मै लिंग परिवर्तन और वापस लेने तक के बिच में किसी से सम्भोग नहीं करूँगा । लेकिन जब मै स्त्री बनी तो मुझे स्त्री सुख पाने की इक्षा जगी और मैंने सम्भोग कर लिया । अतः अब मै अपना लिंग वापस नहीं ले सकता हूँ । तुम जाओ और राजकुमार की तरह जिंदगी व्यतीत करो । जब राजकुमार जाने लगा तो देवता ने कहा - एक बात याद रखना जिंदगी में कभी भी मेरी तरह सीमा से हटकर किसी की मदद मत करना नही तो तुम्हारी भी दशा मेरी जैसी हो जाएगी ।



Sunday 19 May 2013

आप और समाज

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । गर्भ से लेकर श्मशान घाट तक समाज  एक एक व्यक्ति के साथ खड़ा रहता है । जब मनुष्य गर्भ में रहता है तो समाज और परिवार के लोग उसके धरती पर सकुशल आगमन और उसकी माँ की कुशलता के लिए ईश्वर से दुआ मांगते  है । जन्म के समय माँ प्रसव पीड़ा से  मुर्चित सी रहती है और उस समय नवजात को गोद में उठाने वाली गावं की चमॆइन ( चमार की पत्नी ) होती है जो उस नवजात शिशु को  नवजीवन प्रदान करती है । कही कही चमॆइन की जगह पर गाँव की औरते या फुआ या परिवार की कोई बुजुर्ग औरत रहती है ।  आपका नार काटती  है और आपको साफ सुथरा करके , इस धरा पर आपकी नई जीवन की शुरुआत कराती है । जब आप कुछ बड़े होते है तो आपको  पूरा मोहल्ला  और परिवार के लोग आपको गोद में लेकर घुमाते है और आपको खेलाते है उस दरम्यान न जाने कितने लोगो के मुंह और शारीर पर आपने पेशाब किया  होगा । सभी ने आपके इस गलती को माफ करके आपके लिए लम्बी  उम्र और आपकी उज्वल भविष्य की प्रभु से दुआए मांगी ।
जब आप अपने पैरों पर चलने लगे तो आपकी गलतिया बढ़ती गयी । खेतो में  घूम कर कितने किसानो का फसल नुकसान किया आपने । हर किसान आपको हल्की  डांट के साथ  माफ किया ।  पड़ोसियों के कितने फूल के गमलों को आपने  तोडा और पडोसी ख़ुशी के साथ आपको माफ किया । समाज ने आपकी छोटी बड़ी सभी गलतियों को माफ किया ।
पिता , चाचा , बड़ा भाई , दादा और अन्य परिवार के सदस्यों को जब भी आम के बगीचों में कोई आम मिलता तो उस पके आम को ओ खुद न खाकर आपके लिए लाते थे । आपका भाई हर पल आपके साथ चट्टान की तरह खड़ा रहता था कितना प्यार करता था वह आपको ।
आपकी बहन अपनी हिस्से की चीजे भी आपके खाने के  लिए रखती थी । आपकी लम्बी उम्र और सुन्दर भविष्य के लिए  माँ के साथ न जाने कितने त्योहारों को किया करती  थी । हर देवी देवताओं से आपके लिय  मन्नत मांगती थी ।
इस समाज के लोगो ने आपको खेलने के लिए खेल का मैदान दिया और गर्मी के दिनों में  सूर्य की तपती धुप में शीतलता प्रदान करने के लिया घना  बगीचा दिया ।
बचपन का वह शिक्षक जिसने उंगली पकड़कर क ,ख ग  सिखाकर आपके शिक्षा की बुनियाद को मजबूत किया
। न  जाने कितने त्याग और बलिदान इस समाज ने आपके लिए किया।
  लेकिन आपने इस समाज को क्या दिया । क्याकिया आपने उस माँ  सादृश महिला के लिए जिसने आपको जन्म के समय  अपनी गोद में उठाया था  । भूल गए उस भाई और बहन  को अपनी व्यस्तता का बहाना बनाकर । भूल गये  उस चाचा को जिसके चेहरे पर किलकारिय मारते हुए न जाने कितनी बार  अपने थूका था । इतना ही नहीं आप अपनी चमचमाती गाड़ी को चलाने के लिए गाँव के उस मखमली दूब से आच्छादित पगडण्डी को कंक्रीट का निर्जीव सड़क बना दिया । आपने  उस हरे भरे बगीचों को उजाड़कर अपने लिए कंक्रीट और लोहे का जंगल बना लिया ।
कुछ तो  समाज और परिवार के लिए सोचे नहीं तो आप अकेले पड़ जायेंगे ।

Wednesday 19 September 2012

भलाई का संदेश


स्वामी विवेकानंद अमेरिका जानेवाले थे ।अमेरिका जाने से पूर्व माँ शारदा का आशीर्वाद लेने गए और कहा ,"माँ मैं अमेरिका जा रहा हूँ ।मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए ।"
यह सुनकर भी माँ पर तो जैसे कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा । स्वामी जी ने माँ से फिर आशीर्वाद माँगा ,माँ  फिर चुप्पी साधे रही ।काफी देर बाद माँ ने स्वामी जी से कमरे की तक में पड़ा चाकू ले आने को कहा । उन्होंने झट से चाकू लाकर दे दिया ।पर आशीर्वाद से चाकू का क्या रिश्ता है , यह वे समझ न सके ।
इधर माँ ने चाकू पाते ही आशीर्वाद की झड़ी लगा दी ।स्वामी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ और वे माँ से चाकू एवं आशीर्वाद का सम्बन्ध पूछ ही बैठे ।
माँ ने मुसकराते हुए जबाब दिया ,:पुत्र जब मैंने चाकू माँगा तो तुम चाकू का फल तो अपने हाथ में पकडे रहे और दूसरी ओर से चाकू मुझे थमा दिया ।इससे मै समझ गई कि तुम सारी बुराईओ को अपने पास रखकर लोगो की भलाई करोगे । स्वयं चाहे तुम विष पी लो , परन्तु लोगो में अमृत ही बाटोगे ।मै  तुम्हे हृदय से आशीर्वाद दे रही हूँ ।
यह सुनकर स्वामीजी बड़े निश्छल भाव से कहने लगे . "पर माँ मैने तो यह सोचा भी नहीं था ।मै चाकू का फल इस कारण पकडे रहा  तुम्हे चोट न लगे ।
पर माँ प्रसन्न होकर कहने लगी की तब तो और भी अच्छा है ।तुम्हारा तो स्वाभाव में ही भलाई है , तुम किसी का बुरा नहीं करोगे ।तुम जन्म से ही महान हो , सहज संत हो ।

Thursday 6 September 2012

स्वामी विवेकानंद और भंगी

सन 1888   की  घटना है । स्वामी जी लखनऊ से  वृन्दावन जा रहे थे ।वृन्दावन जाने के रास्ते  में ही उन्होंने देखा कि सड़क के किनारे एक आदमी  निश्चिन्त होकर तम्बाकू पी रहा था ।स्वामीजी कुछ पल के लिए रुके और हाथ बढ़ा कर उस आदमी से चिलम मांगी ।उस आदमी ने देखा कि एक युवा सन्यासी ,जिसके मस्तक से तेज चमक रहा है,उससे  चिलम मांग रहा है तो संकोच और भय  के मिले जुले भाव उसके ह्रदय में उत्पन्न हुए ।उसने कहा , " महाराज "मैं जाती  से भंगी हूँ ।"
भंगी यानि मेहतर ।स्वामीजी ने यह सुना तो उनका हाथ स्वतः पीछे हट गया ।वे मार्ग पर आगे बढने लगे ।किन्तु कुछ दूर जाने पर मानो उनकी चेतना लौटी ।उन्होंने सोचा ,"ओह ,धिक्कार है मुझे ।अब तक मैंने आत्मा के एकत्व पर ध्यान दिया है ।मैंने तो कुल,जाती , मान -सभी को त्यागकर सन्यास ले लिया है।फिर उसकी जाति (मेहतर )जानने के बाद मेरा जाति -अभिमान भला क्यों जाग गया ।उसे अछूत मानकर उसकी चीज छुए बिना मै आगे क्यों बढ़ गया ?उसकी छुई हुयी चिलम मैंने क्यों नहीं ली ? क्या अपने पूर्व  संस्कारो पर विजय प्राप्त करना सचमुच कठिन है ?    
स्वामीजी वापस उस भंगी के समीप पहुंचे ।उन्होंने उससे चिलम भरवाई और उसके साथ ही बैठकर उसका आनंद लिया ।तत्पश्चात  ही वे आगे बढ़े । तब उनके चित को असीम सुख प्राप्त हुआ ।

Saturday 1 September 2012

मूर्ति और आस्था

एक बार अलवर के महाराजा ने  स्वामी विवेकानंद से पूछा "स्वामी जी !लकड़ी ,मिट्टी ,धातु या पत्थर की बनी मूर्तियों के प्रति भक्ति भाव नहीं रखता ।क्या इसके लिए मुझे परलोक में कठोर सजा भुगतनी पड़ेगी ?"
स्वामी जी बोले ,"अपने विश्वास के अनुसार उपासना करने पर परलोक में सजा  क्यों मिलेगी ?"
उनकी यह बात सुनकर वहाँ उपस्थित लोग सोचने लगे कि श्री बिहारीजी के मंदिर में श्री मूर्ति के सम्मुख भजन गाते समय भावावेश में रोते हुए साष्टांग गिरने वाले स्वामीजी ने मूर्ति पूजा के समर्थन में तर्क क्यों नहीं दिया ? उसी समय स्वामीजी की दृष्टि महाराज के एक चित्र (जो दिवार पर टंगा था ) पर पड़ी ।स्वामी जी ने उसे उतरवाया और महाराज के सामने ही दीवान तथा अन्य राजकर्मचारियों से कहा , "इस चित्र पर थूकिये ।'
काफी देर तक उनके कहने पर भी किसी ने नहीं थूका ।दीवान ने कहा ," आप क्या कह रहे है ,स्वामी जी !क्या हम महाराज के चित्र पर थूक सकते है !"
स्वामी जी ने पूछा , "क्यों नहीं थूक सकते? इसमे महाराज स्वयं तो उपस्थित नहीं है ।यह तो सिर्फ कागज है ।यह महाराज की तरह हिल डुल भी नहीं सकता ।आप लोग इसपर इसलिए नहीं थूक रहे है कि थूकने से महाराजा के प्रति असम्मान प्रकट होगा ।क्यों यह बात सही है न ?"
सभी समवेत स्वर में कहा , " जी हाँ "
स्वामी जी ने कहा , "महाराज इस चित्र में आप नहीं है ;किन्तु दूसरी दृष्टी से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि इस चित्र में भी आपका अस्तित्वा अस्तित्व है ।इसलिए कोई इसपर थूकने के लिए तैयार नहीं हुआ ।ये लोग आपको तथा इस चित्र को एक  ही दृष्टी से देखते है ।इसी तरह भक्तगण द्वारा मूर्तियों एवं चित्रों में भगवन को देखते ही मन-मस्तिष्क में उसी भगवन की छवि अंकित हो जाती है ।मैंने अनेक स्थानों पर भ्रमण किया, परन्तु कही भी किसी हिन्दू को यह कहते कभी नहीं सुना है कि  हे चित्र , हे पत्थर ,हे धातु !मै तुम्हारी पूजा कर रहा हूँ ।तुम मुझ पर प्रसन्न हो जाओ ।भक्तगण तो अपने ह्रदय में भगवन की छवि बैठाये रखते है और अपने अपने भाव से ,विभिन्न प्रकार से उनकी उपासना  है।"
स्वानी जी का यह उत्तर सुनकर महाराज सहित वहां उपस्थित सभी लोग गद्गद हो गए ।

Tuesday 13 March 2012

आजाद हिंदुस्तान के लोकतंत्र में स्वर्गीय पंडित नेहरू जी का लगाया हुआ वंशवाद का पौधा आज वट वृक्ष बन चूका है . वंशवाद शुरू करने के पीछे नेहरू जी की  नियत ये थी की हिंदुस्तान की जनता को भारत का प्रधान मंत्री की कुर्सी से वंचित रखा जाय . वही हुआ जो नेहरू चाहते थे उनके वंश के तमाम लोग भारत का प्रधान मंत्री बने और देश की जनता को उस कुर्सी से दूर  रखा गया और इसके साथ ही नेहरू जी  का सपना भी साकार हो गया लेकिन यह वंश  वाद और भयानक रूप ले लिया जब नेहरू जी के  नक़्शे  कदम पर हिंदुस्तान के छोटे बड़े तमाम दल के नेताओं  ने चलते हु वंशा वाद को अपना लिया . और हिंदुस्तान की जनता को न सिर्फ प्रधान मंत्री की कुर्सी से दूर  रखा बल्कि राज्यों के मुख्या मंत्री की कुर्सी से भी दूर कर दिया . अब भारत की गरीब जनता का बेटा न  कभी प्रधान मंत्री और नहीं कभी  मुख्या मंत्री बन सकता है प्रधान मंत्री राहुल गाँधी जी बनेंगे या फिर किसी बड़े नेता का बेटा और मुख्या मंत्री मुलायम सिंह जी का बेटा बनेंगे या फिर फारुख अब्दुला का बेटा बनेंगे .
  गरीब जनता आप गरीब ही रहेंगे अगर समय रहते नहीं चेतेंगे
     जय हो लोकतंत्र की